जनमदीन की शुभकामना #प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) #LaxmikantPyarelal
प्यारेलालजी का जन्म ३ सितम्बर, १९४० में मुंबई में हुआ. प्यारेलालजी के पिताजी पंडित रामप्रसाद शर्मा नामांकित ट्रम्पेट प्लेयर थे और संगीत शिक्षक थे. संगीत की प्रम्भारिक शिक्षा प्यारेलालजी ने अपने पिताजी से प्राप्त की. ववेस्टर्न संगीत के नोट लिखना और वायलिन। बाद में प्यारेलालजी ने सुप्रसिद्ध वायोलिन वादक और शिक्षक, गोवा के श्री अन्थोनी गोंसाल्विस से वायोलीन की शिक्षा प्राप्त की. केवल आठ साल के उम्रमें प्यारेलालजी ने वायलिन में निपुणता हासिल कर ली.
घरके हालात ठीक नहीं थे. ऐसे में उंहने पैसे कमाने के लिए चर्चमें वायोलीन बजाना चालू किया।
८ साल की उम्र में प्यारेलालजी अपने पिताजी पंडित रामप्रसाद शर्मा जी साथ |
लता मंगेशकर के छोटे भाई पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, जो के प्यारेलालजी के हमउम्र थे, हम उम्र थे, उन्होंने प्यारेलाल जी के पिताजी से संगीत सीखना चालू किया। उन्ही दिनों प्यारेलाल और पंडित हृदयनाथ मंगेशकर अच्छे दोस्त बन गए..
पंडित हृदयनाथ मंगेशकर ने अपने ही घरमे एक संगीत अकादमी शुरू की और उसका नाम रखा था “सुरीला बाल केंद्र”. उस अकादमी में हृदयनाथजी के अलावा उनकी बहने मीना मंगेशकर और उषा मंगेशकर , प्यारेलालजी, उनके छोटे भाई गणेश, गोरख, आनंद, महेश, नरेश इत्यादि लोग थे. १० साल के उम्रके प्यारेलाल (छोटे संगीतकार) और बाकि बालक सब के सब लता मंगेशकर के घर में रहना, खाना और संगीत बजाना।
थोड़े ही दिनोंमें भारत रत्न लता मंगेशकर ने एक कॉन्सर्ट में लक्ष्मीकांत को मेंडोलिन बजाते सुना। लताजी ने दोनों भाइयों लक्ष्मीकांत और शशिकांत को शंकर-जयकिशन, नौशाद, सी रामचंद्र और सचिन देव बर्मन के पास शिफारस की. साथ ही लताजी ने लक्ष्मीकांत और उनके बड़े भाई शशिकांत को “सुरीला बाल केंद्र” में भेज दिया।
वहींसे शुरू हुआ प्यारेलाल जी और लक्ष्मीकांत जी के लम्बी “दोस्ती” सिलसिला। वहींसे याने की लता मंगेशकर जी के घर से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के “नाम “ का उदय हुआ. फिर क्या हुआ सब लोग जानते हे। १९६३ से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (१९६३ - १९९८) के नाम का एक युग की शुरुआत हुई।
503 फिल्में, 160 गायक, 72 गीतकार, 2845 गाने। बॉलीवुड संगीत में
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का जबरदस्त योगदान।
प्यारेलालजी ने एक वायलिन वादक के रूप में, संगीतकार के बुलो सी रानी, नौशाद, मदन मोहन, सी रामचंद्र, खय्याम, चित्रगुप्त और एस डी बर्मन के साथ काम किया है।
प्यारेलाल जी ने 23 साल की उम्र में और लक्ष्मीकांत ने 26 साल की उम्र में, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल नामक संगीत निर्देशक के रूप में फिल्म “पारसमणि” के माध्यम से शुरुआत की, जो वर्ष 1963 की तीसरी तिमाही में आई थी। बी ग्रेड की फिल्म लेकिन ए ग्रेड का संगीत। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने कुछ ऐसे दिलचस्प गाने लिखे, जिन्होंने एक औसत फिल्म को एक बड़ी हिट में बदल दिया।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुमधुर और भव्य ऑर्केस्ट्रा से सजाये गए चुनिंदा गाने।
यह कोई साधारण गाने नहीं है, केवल वे लोग ही इसका अधिक आनंद ले सकते हैं जिनकी संगीत में विशेष रुचि है... यह एक वैकल्पिक संगीत है... अपने समय का सोना...
१) रुक जा ए हवा, थम जा ए बहार “शागिर्द” १९६७। मजरूह सुल्तापुरी / लता मंगेशकर
लता मंगेशकर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का एक चमत्कारी गीत, जिसे मजरूह सुल्तापुरी ने लिखा है.
खूबसूरत अभिनेत्री सायरा बानो पर फिल्माया गया है ।
इस गाने को हम एन इंडियन साउंड ऑफ म्यूजिक भी कहते हैं।
59 सेकंड का “प्रील्यूड” (गाना शुरू होनेसे पहले का ऑर्केस्ट्रा / संगीत) जंगल के दृश्य को फ्रेम करने के लिए अद्भुत रूप से तैयार किया गया है। बांसुरी, अकॉर्डियन, सेलोस, सितार, तानपुरा, सिम्फनी शैली के वायलिन और विशेष रूप से पक्षियों का कलरव, मधुर रूप से एकीकृत किया गया है. लताजी के आलाप द्वारा शानदार शुरुआत के साथ समाप्त होता है। .. लताजी 1.00 बजे गाना शुरू करती हैं रुक जा zzzz ..रुक जा ssss ...रुक जा स्स...हर बार 3 सेकंड के लिए 'विराम' (singing pause ) देते हुए बिना 'ताल' (rhythm) के। अगले 34 सेकण्ड्स तक सुखद सिम्फनी शैली ऑर्केस्ट्रा में सेलो का आनंद लें।
संपूर्ण 'मुखड़ा' और 'अंतरा' सहित गीत को लताजी के गायन के इर्द-गिर्द "सिम्फनी" वायलिन की ध्वनियों के साथ मधुरता से संश्लेषित किया गया है। इसमें एक अनूठी ढोलक / तबला लय है जो पूरे गीत में श्रोताओं को बांधे रखती है।
२ ) कजरा लगा के रे बिंदिया. “जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली” १९६७। मजरूह सुल्तापुरी / लता मंगेशकर
गीत की रचना का अनोखा तरीका (जैसा कि लिविंग लीजेंड प्यारेलाल जी द्वारा सुनाया गया है)
दिग्गज अभिनेता, निर्माता-निर्देशक, दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता वी. शांताराम के साथ काम करना गर्व की बात हुआ करती थी। वे प्रतिभा के महान पारखी थे। अपनी फिल्मों के संगीत के प्रति उनमें असाधारण संवेदनशीलता थी। वी. शांताराम की फिल्मों के गीत और संगीत की गुणवत्ता अद्वितीय और विशेष हुआ करती थी । वी. शांताराम कैंप में प्रवेश करना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने संगीत निर्देशकों की अपनी पसंद 2 से 3 तक सीमित रखी थी। सी रामचंद्र और वसंत देसाई को छोड़कर चालीस, पचास, साठ और सत्तर के दशक के कई बड़े संगीत निर्देशकों को वी. शांताराम के साथ काम करने का मौका नहीं मिल सका।
१९७० में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को वी शांताराम की "क्लासिक", डांस-म्यूजिकल “ “फिल्म "जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली" में पहली बार काम करने का मौका
वी. शांताराम की पत्नी, संध्या, अभिनेत्री, नर्तकी और अनुभवी नृत्य - रचनाकार ने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को कहा की :: उनके डांसिंग स्टेप्स देखकर ताल (rhythm), लय और ढोलक का ठेका बनाये। और दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को कहा की :: चेहरे के भावों को देखकर शब्द लिखे। ..... काफी प्रैक्टिस और अभ्यास। ......... और ८ से १० घंटोमें गाना तैयार हुआ.
यह मधुर गीत "मयूर नृत्य" पर है । अलग शैली की रचना, पश्चिमी शैली में बांसुरी का प्रयोग प्रमुखतासे किया है। शायद सबसे लंबा "प्रील्यूड" / शुरुआत का संगीत , 3 मिनट और 27 सेकंड । ढोलक की विभिन्न रीधम, पश्चिमी शैली का ऑर्केस्ट्रा में बांसुरी और संतूर, वायलिन, वायोला और गिटार का प्रमुख रूप से उपयोग किया है। साथ ही गाने का "पोस्टलूड"/ बाद का संगीत और "मयूर डांस" सुनना / देखना न भूलें। वी शांताराम की पत्नी संध्या पर ये गाना फिल्माया है.
३) ओ घटा सावरी थोड़ी थोड़ी बावरी “अभिनेत्री” १९७१ मजरूह सुल्तानपुरी / लता मंगेशकर
एक और संगीतमय हिट फिल्म है जिसमें लता मंगेशकर द्वारा छह गाने गाए गए हैं। यह हमेशा एक सर्वश्रेष्ठ गान रहेगा. एक योग गीत. हेमा मालिनी का बेतरीन डांस / एक्टिंग
५७ सेकंड का आकर्षक "प्रस्तावना" (prelude), सिम्फनी शैली के वायलिन, Jaaz बांसुरी, संतूर, ग्लोकेंसपील और लताजी की गुनगुनाती आवाज़ के साथ। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने लता की आवाज़ और jaaz बांसुरी की खूबसूरत झलकियों के बीच जिस तरह से तालमेल बिठाया है, वह वाकई मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। बारिश के मौसम का प्रभाव पैदा करने के साथ-साथ गाने का मूड भी सेट करता है। सभी "इंटरल्यूड" अलग-अलग धुनों के साथ हैं। दूसरे 'इंटरल्यूड' में पानी की आवाज़ बनाना कमाल का है। गाने के बीच में फिलर के तौर पर jaaz फ़्लूट की झलक + pause " विराम" और पश्चिमी शैली की rhythm ने इस गीत को विशेष बना दिया है।
४ ) हम तुम एक कमरा मैं बंद हो !! “बॉबी” १९७३ आनंद बक्शी / लता मंगेशकर - शैलेन्द्र सिंह
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा भव्य, समृद्ध और मधुर ऑर्केस्ट्रा। “ईरानी संतूर” का बेहतरीन इसरतेमाल
हम तुम।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन,.
एक कमरे में बंद हो ,,,,,,,,,ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन,.
ये ,,,,,,,,ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन, ढण ढण टन टन,,,,,,क्या है ? टो स्टेपिंग रिदम
अलग टाइप की rhythm तैयार की है। जो हरेक ५ सेकण्ड्स के सिंगिंग पॉज में बजता है.
टो स्टेपिंग रिदम:- ईरानी संतूर (पंडित शिवकुमार शर्मा द्वारा बजाया गया) + अकॉर्डियन (सुमित मित्रा द्वारा बजाया गया) + बोंगो ड्रम का मिश्रण। गिटार (बजाने वाले गोरख शर्मा, प्यारेलालजी के छोटे भाई )
गायन (पॉज) "विराम" / singing pauses हैं। पहला ‘pause’ गाना शुरु के तुरंत बाद 0.27 सेकंड पर है..हम तुम s s s । बेहतरीन तरीकेसे रचित 'लय' rhythm। गीत में ५ सेकंड के कई गायन "विराम" (singing pauses) हैं। पहला ‘pause’ गाना शुरु के तुरंत बाद 0.27 सेकंड पर है..हम तुम s s s । बेहतरीन तरीकेसे रचित 'लय' rhythm पर प्रकाश डालते हुए (आलाप)
“ईरानी संतूर” और गाने में इसकी लय का जादू बस मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।ईरानी संतूर का इस्तेमाल लय बनाने के लिए एक वाद्य यंत्र के रूप में किया गया है, जो अकॉर्डियन और बोंगा ड्रम के साथ तालमेल बिठाता है.. पूरे गाने में. इस गाने में दूसरे पश्चिमी शैली के वाद्य यंत्र भी हैं.
दूसरे इंटरल्यूड में ईरानी संतूर से शुरुआत करें और लता की खूबसूरत आवाज़ के साथ ओवरलैप करें.
तीसरा इंटरल्यूड:- ध्वनिक गिटार, ट्रम्पेट, सैक्सोफोन, वायलिन, माउथोर्गन, फ्रेंच हॉर्न और violins स। 6.32 पर 2 सेकंड के लिए रुकें सरल शब्दों के साथ सरल धुन को टो स्टेपिंग रिदम के साथ मधुरता से ऑर्केस्ट्रेटेड किया गया है।
इस गाने की एक और खासियत है सभी ‘इंटरल्यूड्स’ में विभिन्न वाद्ययंत्रों के “ओवरलैपिंग” साउंड इफ़ेक्ट। ऑर्केस्ट्रा व्यवस्था के मामले में मैं इस गाने को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की डेस्क से बेहतरीन रचनाओं में से एक मानूंगा।
इसमें >>तीन अलग-अलग ट्यून किए गए "अन्तरा" + तीन अलग-अलग रचित "इंटरल्यूड्स" हैं... और मंत्रमुग्ध कर देने वाला ऑर्केस्ट्रा संयोजन।
कश्मीर के शानदार लोकेशन और राज कपूर द्वारा गाने के सराहनीय फिल्मांकन को न भूलें।यह गना ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया पर फिल्माया हैः.
५) रोज़ शाम आती थी “इम्तिहान” १९७४। … मजरूह सुल्तानपुरी / लता मगेशकर
यह गाना इम्तिहान, १९७४ का है, जिसके चारों गाने हिट रहे। यह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की सुपरहिट फ़िल्मों “बॉबी”, “दाग”, “मनचली” और “रोटी कपड़ा मकान”, “लोफ़र” के बीच में ये फिल्म रिलीज़ हुई थी
लता मंगेशकर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की अनोखी जोड़ी ने साठ के दशक में कई यादगार गाने दिए (लगभग 179 गाने)। सत्तर के दशक में भी इससे बेहतरीन गाने की उम्मीद थी। यह गाना आज भी लोकप्रिय है। सबसे बढ़कर...लताजी और एल.पी. की केमिस्ट्री ने कमाल कर दिया।
67 सेकंड का prelude "प्रस्तावना"::- 0.15 सेकंड पर पक्षियों का चहचहाना, फिर गिटार की झलकियाँ (glimpses) शुरू होती हैं, फ्रेंच हॉर्न (0.34 से 0.44), ईरानी संतूर (0.55 तक) और फिर 1.06 तक लताजी का आलाप और singing pause "विराम" ..ये संगीत 'सूर्यास्त' का एहसास देता है और गीत सुनने का मूड सेट करता है।
बोंगो/कोंगा ड्रम की शक्तिशाली लय (powerful rhythm) . लताजी 'रोज शाम आती थी' (1.11...1.14) गाने के बाद रुक जाती हैं, (singing paus) 1.16 ... 1.19 पर फिर rhythm / "ताल" सुनें... यह केवल लय / rhythm सुनने के लिए एक "कान को भाने वाला" क्षण देता है। आपको गीत में फिर से ऐसे "विराम" मिलेंगे।
"इंटरल्यूड्स":- दोनों इंटरल्यूड्स को वायलिन, सेलोस, ईरानी संतूर और फ्रेंच हॉर्न के इस्तेमाल के साथ पश्चिमी शैली के ऑर्केस्ट्रा से खूबसूरती से सजाया गया है। मन को झकझोर देने वाला "पोस्टल्यूड" (गाने के आखीर में बजनेवाला संगीत) सुनना न भूलें। यह गाना तनुजा और विनोद खन्ना पर फिल्माया गया है।
प्यारेलालजी को जनमदिन की बधाई
अजय पौंडरिक
वड़ोदरा
श्री अजय पौंडरीक ने हाल ही में एक ७०० पन्नों ली पुस्तक लिखी है "LAXMIKANT-PYARELAL, Music Forever”. An L P Era :: 1963 - 1998 । श्री अजय पौंडरीक, महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, वडोदरा से, तानसेन की नगरी ग्वालियर में पैदा हुए थे। मैकेनिकल इंजीनियर। वे १९६३ से, आठ साल की उम्र से हिंदी फिल्म संगीत के शौकीन हैं, संयोग से, संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के बीच ३५ साल की लंबी साझेदारी १९६३ में "पारसमणि" फिल्म के साथ शुरू हुई और अजयजी का लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल संगीत के प्रति प्रेम शुरू हुआ। अजय जी को अन्य समकालीन संगीतकारों की रचनाएँ भी पसंद हैं, लेकिन वे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत के प्रशंसक हैं। श्री अजय पौंडरीक को संगीत के प्रति प्रेम अपनी माँ से विरासत में मिला. रोजगार के सिलसिले में वे विदेश में रहे, 20 वर्ष नाइजीरिया में और एक वर्ष अफगानिस्तान में।
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